बहुत ही सहज बाल कहानियां

दीनदयाल शर्मा
आज के बदलते परिवेश में बच्चे भले ही इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की गिरफ्त में बंधते जा रहे हैं फिर भी अधिकांश बच्चे ऐसे भी हैं जो बाल साहित्य की रचनाओं से आनंद की अनुभूति के साथ-साथ ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा को भी शांत करते हैं। बाल साहित्य की चूंकी अनेक विधाएं हैं लेकिन कहानी विधा में बच्चे सबसे ज्यादा रूचि लेते हैं। अब जीवन की भागमभाग और एकल परिवार के कारण दादी-नानी की ओर से कहानी सुनाने की ‘वाचन परम्परा’ तो लगभग खत्म सी हो गई है। ऐसे माहौल में किसी रचनाकार की मायड़ भाषा में सृजित बाल कथा कृति यदि बाल पाठक तक पहुंचती है तो यूं लगता है मानो तपती रेत में बादलों से फुहार हो रही है। बाल मन की संवेदना को साझा करने वाले डॉ.नीरज दइया स्वयं शिक्षक है और एक शिक्षक जब बाल साहित्य का सृजन करता है तो वह रचना वास्तविकता के आस-पास महसूस होती है।
डॉ.दइया की सद्य प्रकाशित बाल कथा कृति ‘जादू रो पेन’ में बच्चों का लडऩा-झगडऩा, खेलना-कूदना, पढऩा-लिखना, छिपाना-बताना आदि अनेक क्रियाक्लापों को बाल कहानियों द्वारा बहुत ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है। कार्य की नियमितता बनाए रखने की प्रेरणा देती कहानी ‘रोज रो काम रोज’, कहानी लिखने की सीख देती ‘कहाणी लिख सूं’, आपस के मनमुटाव और झगड़ों को मिटाने का मूलमंत्र देती कहानी ‘लड़ाई-लड़ाई माफ करो’, मेहनत का बल पर आगे बढऩे का भेद बताती शीर्षक कहानी ‘जादू रो पेन’, पढ़ाई में ‘शॉर्ट कट’ अपनाने वाले विद्यार्थियों की आँख खोलने वाली कहानी ‘गैस उडग़ी’ समेत ‘फैसलो’, ‘म्हैं चोर कोनी बणूं’, ‘सीखै तो अेक ओळी घणी’, ‘राजू री हुसयारी’, ‘गणित री कहाणी’, तथा ‘बरस गांठ’ भी बालमन की सरल, तरल और सहज कहानियां हैं।
चित्रकार सुनील कांगड़ा द्वारा बनाया गया पुस्तक का आवरण आकर्षक होने के साथ-साथ इसकी साज-सज्जा में राजूराम बिजारणियां का कला पक्ष भी सराहनीय है। स्तरीय कागज पर साफ सुथरी छपाई के लिए प्रकाशक भी बधाई के पात्र हैं।