मौन को मुखरित करता रचनाकर्म : उचटी हुई नींद

संजय आचार्य ‘वरुण’
             सामान्य तौर पर कविता कर्म को जितना सरल माना जाता है वास्तव में यह उतना ही नहीं बल्कि उससे अधिक जोखिम भरा और चुनौतीपूर्ण काम है. दरअस्ल कविता हमारे भीतर का वह सत्य होती है जो हमारे अन्य सभी माध्यमों से अभिव्यक्त होने के बाद भी कहीं अव्यक्त रह जाती है. इसे कविता की कसौटी भी माना जा सकता है कि जो अन्य किसी भी माध्यम से प्रकट नहीं की जा सके, कविता मानव मन की उन्हीं अनुभूतियों का सतरंगा कोलाज होती है. पुन: पुन: कविता लिखने की आवश्यकता को भी इन्हीं सन्दर्भों में समझा जा सकता है. रघुवीर सहाय अपने कविता संग्रहों की भूमिकाओं में लगभग हर बार यह लिखा करते थे कि- पिछली कविताओं में बहुत कुछ छूट गया था. उस काल की कविताओं में मैं दो नहीं लिख पाया, वह मैंने अब लिखने की कोशिश की है.
           हर बार कुछ छूट जाना, अनकहा रह जाना ही निरन्तर लिखते रहने की अनिवार्यता को अस्तित्व प्रदान करता है. डॉ. नीरज दइया साहित्य की सभी प्रमुख और प्रचलित विधाओं में अधिकार पूर्वक लिखते हैं. लेकिन इतना सब कुछ लिखने- रचने के बाद भी जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उनके भीतर शेष रह जाता है वही उनकी कविताओं के रूप में सामने आता है.
             'उचटी हुई नींद' कविता संग्रह को पढ़ने के बाद मुझे अपने आप से जो पहली प्रतिक्रिया प्राप्त होती है, वह यह है कि नीरज दइया मौन को मुखरता देने वाले कवि हैं. मौन को मुखरता देने का मेरा आशय यहां यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में अनगिनत अनुभूतियों को अपने अंदर संकलित करता है लेकिन अधिकांश बार उन अनुभूतियों को कहना, लिखना, बयान करना तो दूर, उन्हें ठीक तरह से समझ पाना भी सबके लिए संभव नहीं होता. वे अनुभूतियां हमेशा मौन ही रह जाती हैं. डॉ. नीरज दइया कवि के रूप में उसी मौन का सिरा पकड़ कर बाहर खींच लाते हैं. इसे हम उनकी काव्याभिव्यक्ति में मौलिकता 'Originality in Poetic Expression' का आधार, कारण या रहस्य मान सकते हैं.
उचटी हुई नींद कविता संग्रह में कविताओं के विषयों की दृष्टि से बहुत अधिक विविधता नहीं है. संग्रह का मूल स्वर प्रेम को स्वीकार किया जा सकता है. एक रचनाकार और आम आदमी में प्रेम को लेकर बहुत महीन सा अंतर होता है, वह स्वाभाविक रूप से नीरज जी के यहां भी है. आम आदमी प्रेम करता है और रचनाकार उसे गोपनीय ढंग से जीते हुए बहुत शिद्दत से महसूस भी करता है. 'प्रेम का समय' कविता की अाख़िरी पंक्तियों में नीरज कहते हैं- समय से पहले का प्रेम/और समय के बाद का प्रेम/ होता है कष्टकारक/ ठीक समय पर/ होता ही नहीं प्रेम. (पृ.64). किसी का किसी की स्मृतियों में रहना या आना एक बहुत सामान्य सी क्रिया होती है लेकिन कवि ने इसे बहुत खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है- तुम्हारी स्मृति/ अभी तक नहीं भूली/मुझ तक पहुंचने के रास्ते.(पृ. 67)   मानव के जीवन में जब प्रेम का आगमन होता है तो उसके देखने, सोचने और समझने के सभी कोण बिल्कुल बदल जाते हैं. उसकी दृष्टि में एक अघोषित कलात्मकता आ जाती है. आदमी जिस रंग के कांच वाला चश्मा पहनता है उसे सब चीजें उसी रंग की प्रतीत होती हैं. प्रेम भी एक ऐसा चश्मा है जिसके चढ़ने पर सब कुछ प्रेममय ही दिखाई देता है. कवि ने इस कोमल भाव को कुछ इस तरह से अभिव्यक्त किया है- प्रेम से पहले/ था आकाश में चांद/ मैंने देखा नहीं/ जब देखा/ दिखा नहीं ऐसा/ दिख रहा है अब जैसा. (पृ. 32)  प्रेम की तीव्रता का अनुभव बड़ा विचित्र होता है. सामान्यतया लोग उसे देह से जोड़कर समझते हैं लेकिन वास्तव में प्रेम की तीव्रता का सम्बन्ध आत्मा से होता है. विशुद्ध प्रेम की आत्मीय तीव्रता को समझने के लिए नीरज जी की इस कविता बेहतर अवसर प्रदान करती है- प्रेम करने के लिए/ लगाए सात चक्कर/ अग्नि केवल/ साक्ष्य रूप/ सामने नहीं थी/ वह थी देह में भी/ जलकर/ हम हुए एक/ होंगे जुदा/जलकर ही. (पृ.41)
          इस संग्रह में श्री नीरज दइया ने प्रेम को संवेदना के कई- कई स्तरों पर आकर महसूसते हुए अनेक हृदय स्पर्शी कविताएं पाठक को सौंपी है. संग्रह का दूसरा मुख्य स्वर एक सृजक की सृजनात्मक प्रवृतियों और प्रक्रियाओं को उद्घाटित करता है. कवि शब्द की सत्ता, गरिमाऔर सामर्थ्य से बहुत गहरे तक प्रभावित है. वे शब्द को सदैव अपने इर्द- गिर्द और अपने साथ ही पाते हैं. वे शब्द को बहुत अपनापे के साथ अनुभव करते हैं- ऐसे में कुछ शब्द/ हो जाते हैं नाराज/मैं अटक जाता हूं/ उनके पास कहीं करीब/ शब्द हैं तो सही/ पर शायद नींद में है/ या कहीं चले गए हैं दूर/ कुछ शब्द और मैं/ खड़े हैं विरह में मूर्तिवत/ खामोश- उदास, सुस्त से.(पृ.20)  पुस्तक की तीन आखिरी कविताएं 'पूर्वज, पापड़,विवश' जिन्हें गद्य कविता के रूप में पहचाना जाता है, में कवि ने अपनी वैचारिक क्षमताओं का अभूतपूर्व परिचय दिया है. एक बानगी देखिए- ' हमको जब दफनाया जाएगा..मिट्टी में मिलकर..करेंगे हम पृथ्वी से प्रेम..कण कण में समाने की यह एक विचित्र यात्रा होगी..आग में जलकर बसेरा करेंगे..आग में बनकर एकरंग और अपने अवशेषों के साथ जल में मिलकर  हम एक दिन पुन: प्रवेश करेंगे हमारे प्रियजनों के भीतर.' (पृ.77)
इन काव्य पंक्तियों की ऊंचाई से पता चलता है कि कवि न केवल अपने खुद के धरातल पर है बल्कि आयुर्वेद और शरीर शास्त्र की मान्यतानुसार अपने सूक्ष्म शरीर या अवचेतन मन के जरिये सृष्टि के अनुभव लेकर स्वयं में लौटे हुए इंसान हैं. यहां पर प्रसिद्ध जर्मन कवि राइनेर मारिया रिल्के याद आते हैं जिन्होंने अपने पत्र संग्रह-पत्र युवा कवि के नाम- में लिखा है कि ' अपने में लौट आओ, उस कारण को ढूंढ़ो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है'  रिल्के की तरह नीरज जी ने भी प्रेम,अवसादऔर अदृश्य को आपस में ऐसा पिरोया है कि ये सभी बातें एक-दूसरे की पूरक महसूस होती हैं. 'उचटी हुई नींद' बहुत भावुक मन का दस्तावेज है, इसलिए कुछ कविताएं केवल लिखने के लिए लिख दी गई प्रतीत होती हैं. उदाहरण के लिए ' कुछ सपने और' (पृ.22) का उल्लेख किया जा सकता है. बहुत सारी यादगार और पाठक को गहरे तक छूने वाली कविताएं इस संग्रह का हासिल है. डॉ. नीरज दइया को बधाई की वे कविता का अपना मौलिक मुहावरा गढ़ने में सफल हुए हैं.