ओळूं, आस्था अर विस्वास री ‘साख’ / कुंदन माली

समकालीन राजस्थानी कविता रो परिदृश्य काव्य री- अंतर्वस्तु, सिल्प, सैली अर भासा री दीठ सूं घणो व्यापक अर विकसित ई हुयो है, अर इण रै पाण इज कविता-सिरजण री मुख्य विधा बण नै मौजूद है। सिल्प रै प्रयोग रै कारण केईक नुवी-विधावां ई साम्हीं आई, जिण सूं कविता री एकरसता तूटी है, अर केईक नुवा कवियां अठै आपरी उल्लेखजोग मौजूदगी दरसायी है। ओ इज कारण है कै भारतीय भासावां री कविता रै साम्हीं राजस्थानी कविता फौरी-पातळी नीं दीखै।
एकदम नुवा कवि नीरज दइया री कविता पोथी ‘साख’ समकालीन कविता री विकाससील धारा नै आगै ले जावण वाळी, वीं नै रेखांकित करणै वाळी कविता रो परस करावण में सफळ कवितावां री बानगी है। भासा अर सिल्प-सजग कवि नीरज री कविता पिता री मिरतू सूं उपजी पीड़, लाचारी, करुणा अर संवेदना री कविता है, जिण में पिता रै जीवण री ओळूं, वां री छांया में बितायौ बाळपण अर वां रै विजोग सूं उपजी पड़छाया नैं प्रगट करती कवितावां है। जिकौ द्वंद्व अठै मिलै, बौ कवि रै पिता री मौत सूं उपजण वाळै शून्य अर विषाद अर दूजी कानीं वां रै जीवण सूं मिलणै वाळी प्रेरणा अर हूंस रै बिच्चै हुवण वाळै टकराव रै कारण संभव हुवै। इण वास्तै ऐ कवितावां एक नुवै कवि रै मानसिक झंझावात, सांसारिक उथळ-पुथळ अर उतार-चढाव रै साथै-साथै इण संसार-सागर में आस्था अर भरोसै रै साथै जीवण री हूंस री कवितावां है।
आपरै दुख, संताप अर पीड़ा नै कवि कुदरत रै साथै बांटण री कोसीस करै तो बीं नै कुदरत सूं धीजो, साहस अर संयम मिळतो निगै आवै। इण स्तर माथै ‘साख’ री इधकी कवितावां दुख रै साझै अर जीवण रै कुरुखेत में हिम्मत सूं पग रोपणै री कवितावां है।
आपरी रचनासीलता रै मुतालिक कवि लिखै-
‘क्यूं कै म्हैं/ कसमसीजतो-कसमसीजतो सीझ परो/ फगत लिखूं की ओळ्यां/ अर मुगती पाऊं/ उमर री पीड़ सूं/ काढूं- कांटा डील सूं/ अर उण पीड़ पाछलै/ सुख नै/ जद-जद भोगूं/ लोग कैवै-/ लिखी है कविता।’ (पेज-12)
आं ओळ्यां में कवि री सिरजणात्मक प्राथमिकतावां अर चिंतावां नै देखी जाय सकै। लिखारै री आ पीड़ जठै एक कानी कुदरत सूं साझौ करै तो इण री साख सबद भरै। अठै सूं इज कवि रै विषाद रो विस्तार हुवण ढूकै- ‘म्हैं नीं चावूं/ म्हारी पीड़ रा/ बखाण/ पूगै थां तांई/ पण नीं है कोई कारी/ म्हारै दरद री/ साख भरै-/ म्हारो सबद-सबद।’ (पेज-35) आदमी री अमूंझणी सरुआत में वीं नै अभिव्यक्ति सूं रोकै, पण छेवट में वो तमाम बाधावां नैं पार कर नैं खुद नैं दूजां रै साम्हीं प्रगटै जरूर।
अठै ध्यान देवण री बात आ है कै मूलतः पिता री- अकाळ मौत सूं उपजी कवि री पीड़ आपरी तमाम जटिळतावां अर विविधतावां में उजागर हुवै। खास बात गौर करणै री आ भी है कै किसोर मन जद एक झटको (जिको एक भरी-पूरी) पण अकाळ मौत रो दियोड़ो है, संवेदना रा तार झण्झणाय देवै- ‘म्हारी हर बात राखणिया/ म्हनै लाड लडावणिया/जीसा, म्हारै सूं व्हाली/ कांई थांनै मौत लागी?/ म्हैं अजेस नीं पूग्यो हो/ थारै अलगाव री पीड़/ सैवण वाळी उमर मांय/ थे म्हारो नीं/ मौत रो मन राख्यो!/ जीसा!।’ (पेज-44)
घर रै मुखिया री मौत एक जीवती-जागती गिरस्ती री जीवंतता अर हरियाळी री मौत ई है। आपरै आं अनुभवां रै पाण इज कवि कैवै- ‘म्हनै लखावै/ जीसा रै गयां पछै/ मा फगत म्हनै ई भोळा सकै है/ आंसुवां रो भार/ किणी बेटै सारू/ इण गत नै अंवेरणो/ घणो अबखो हुवै।’ (पेज-45) आंसुवां रै इण भार, पीड़ अर जिम्मेदारी नैं तोलतो कवि आपरी मा नै यूं संबोधित करै- ‘... पण म्हैं सदीव उखणियो है/ थारै आंसुवां रो भार!/ थारी उडीक मांय/ थारै पछै/ कीं- बाकी नीं है/ थारै अणदीठ आंसुवां नै टाळ!’ (पेज-57)
आपरी सिजणात्मकता रै पाण, आगै जायनै कवि पिता री ओळूं नैं आपरै संकळप, आस्था अर जीवण-विस्वास में बदळ देवै। कविता में ओ ‘टर्निंग पॉइंट’ खासो महताऊ है क्यूं कै ओ बदळाव अंधारै सूं कवि री लड़ाई में मददगार व्हैला। ‘आसा अमर धन’ है, पण फगत आसा राखणै सूं कीं नीं निपजै, हिम्मत, तागत अर संघर्स करणो पड़ै है आपरै सपनां नैं फळीभूत करणै रै वास्तै। सुख री उमर भलै ई छोटी हुवै, पण वीं नैं अंगेजणौ अर दुख सूं लड़णौ इण जीवण रो मूळधन- ‘काल रै दिन/ म्हैं घड़ूंला. बाळपड़त जाळी-झरोखा/ नूवां थरप देवूंला ध्रू-मोड़ा/ पण परबारो आज/ तावड़ै मांय खटवी खांवतो/ करणा सीखूं हूं जापता/ थारै बगस्योड़ै- अंधारै अर आंधी रा।’ (पेज-56)
इतिहास री गत अर बेगत, संस्कृति रै नाम माथै पनपतै पाखंड अर जीवण-परिवेस में बाजारू सभ्यता रा पसरता पग, विसंगतियां अर विखमतावां कानीं ई कवि री दीठ पूगै है। इण बाबत कवि रो सोच चलताऊ तो नीं है पण औसर जरूर बणग्यो है। कवि परंपरा रो अंधभक्त नीं है, पण वो इण सूं सात्विक अंस अंगीकार करणै रो हामी है। वो आपरै समचै दूजा नै ओळबा जरूर देवै। साफ है कै अठै घणखरी कवितावां में कवि अनुभव री ठौड़ फगत ‘ऑब्जर्वेशन’ अर गहराई अर संवेदनात्मक दीठ री ठौड़ सबदां री सजावट करतो- निगै आवै। बात मांय सूं बात काढणै री कवि री ‘कळा’ ठीक व्है सकै, पण इण में काव्यात्मक हुनर री कमी साफ लखावै। अभिव्यक्ति सूं इन्कार नीं, पण असरविहूणी अभिव्यक्ति सूं कांई सरै? मिसाल रै तौर माथै- ‘सवाल सूं- बचणियां/ ओ म्हारा सूमड़ा मन!/ सिंवर उण गुरुवां नै/ जिण दरसायो- / कै सबद रै हुवै/ आंख अर पांख।’ (पेज-30) आं ओळ्यां में कविता लव-लेस ई नीं, फगत प्रास अर रामत है। इस्सा मोकळा बिम्ब ई कवितावां में आवै जिका शालीन अभिव्यक्ति रो सरासर अनादर है। ‘नकटाई’, ‘नग धड़ंग’, ‘अफंड’, ‘गैला-गूंगा’, ‘चोरां’, कुत्तो’, ‘गधो’, ‘दोगला’ इत्याद सबद-प्रयोग सूं बचणो कवि रै वास्तै जादा कारगर हुवतो। ‘साख’ री कवितावां में, गौर सूं देखा तो ठाह पड़ सकै कै कवि नैं मिळी रचनासील विरासत रा एहलाण ई मौजूद है। ‘ओ म्हरो धन’ नाम री तीस हाइकू री शृंखला इण रो उदाहरण है। अठै ई कवि री निजू-पीड़ अर ओळूं री अभिव्यक्ति हुई है। अर इण दीठ सूं देखां तो ओ कैवणौ घणो बेजा नीं कै नीरज दइया री कविता मूलतः तो ‘सब्जेक्टिव’ कविता इज है। इण सब्जेक्टिव अनुभव-धरातळ सूं चालनै कवि ‘ऑब्जेक्टिविटी’ कानी बधणै री कोसीस करै आ आ कोसीस आपरी इधकाई में ठीकसर निभै ई है, पण निजू-अनुभवां नै कळात्मक रूप सूं दूजां रा अनुभवां में बदळ देवण री बारीकी अर सिरजणात्मक हुनर में कमी ई दीखै है। स्यात इणी’ज कारण सोऒं कवितावां री अंतर्वस्तु अर सिल्प में एकरसता रो प्रवेस व्हैग्यो है। जरूरी ओ है कै एक सरीखा अनुभव व्हैतां ई अनुभव-अभिव्यक्ति री विविधतावा व्है तो कविता जादा असरकारी बण सकै।
‘हाइकू’ में काम आवता बिंब दूजी कवितावां करतां जादा अपील करै। इण रो अरथ ओ ई व्है सकै कै लांबी कवितावां में कसावट अर काव्यात्मक संतुलन री जरूर ही। एक-दो हाइकू रा उदाहरण सूं बात ठीक-ठाक सुभट व्है सकैला- काळजै लाधै/ थारी ओळूं गाठड़ी/ ओ म्हारो धन।’ (पेज-76) अर दूजो- ‘हर उमड़ै/ उमड्यां हुवै कांई/ हदां है पोची।’ (पेज-78) अर तीजो- ‘जद नीं मरिया/ आंगळ्यां घाल’र तो/ बाजां जीवता।’ (पेज-79)
इण ढाळै देखां तो, आपरी कीं रचनात्मक कमजोरियां अर खामियां व्हैतां ई, नीरज दइया री कवितावां इण वास्तै ध्यान खेंचै कै ऐ कवि रै अंतर्मन री पीड़, उणरै अनुभवां री अभिव्यक्ति अर पिता रै विजोग सूं उपजी ओळूं री ईमानदार रचनावां है, अर इण रै पाण कवि रै ऊजळै भविस रा सांतरा संकेत मिळै। मुद्रण गुणवत्ता में ई पोथी फूटरी।
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साख/ काव्य-संग्रै/ कवि- नीरज दइया/ मोल-70 रुपये
प्रकाशक- नेगचार प्रकाशन, बीकानेर
पैलो छापो-1998/ पाना-80
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(जागती जोत, अक्टूबर-1998)