कहाणीकारां री नुंवी दीठ सूं कूंत

राजस्थानी में सातवैं दसक पछै सुखद संजोग री बात आ पण रही के नवै सिरजण रै साथै आलोचना रै आंगणै केई नुंवा लेखक सांम्ही आया, नीरज दइया रौ नांव आं नुंवा लेखकां में आपरी न्यारी पिछाण राखै। लारला बरसां में वै राजस्थानी काव्य अर कथा विधा री अंवेर-परख रौ काम लगोलग करता रह्या, पण वांनै आ बात कीं अपरोखी लागती रही के कहाणी नै लेय’र हाल तांई निजू पसंद-नापसंद, आपसी पखापखी अर आपरी निजू हासलपाई लगावण रौ भाव चालतो रह्यौ है। लोककथा सूं मुगती तौ मिळगी, पण केई जूना लेखकां नै साव बिसराय दिया तौ किणी नै हाल कांधै सूं ई नीं उतारियो। लगैटगै आ ई दसा आधुनिक कहाणीकारां नै लेय’र बरसां बण्योड़ी रही, जद के किणी बात नै बिना हासलपाई अर बिना नफै-नुकसाण री खेचल कियां निरपेख देखणौ-दिखावणौ आलोचना रौ मूळ सुभाव मानीजै। कहाणी अर कहाणीकारां माथै केंद्रित इण पोथी में बिना हासलपाई रै इणी मूळ भाव नै कायम राखण री तजवीज करीजी है। इण पोथी रै मिस जठै कीं गुमियोड़ा कहाणीकारां नै सोध’र सांम्ही लावण रौ जतन करीज्यौ है, वठै कीं नुंवा-नकोर कहाणी सिरजकां री ऊरजा माथै ई ध्यान देवणौ जरूरी लखायौ है। नीरज दइया आ बात पण मानै के जे इण काम में आलोचना रौ पख थोड़ौ पुख्ता अर पूगतौ बण्यौ रैवै, तौ निस्चै ई आ जातरा दूणै उछाव सूं आगै बध सकै। बगत माथै आलोचना री सार-संभाळ सूं नुंवा कहाणीकारां नै दसा-दिसा रा केई रंग निजर आवै। आलोचना मांय कहाणी नै आपरै बगत री दीठ सूं जांच-परख अर उण नै खुद री परंपरा में देखण-समझण रौ भाव महताऊ हुया करै अर इण दीठ सूं अठै कहाणीकार री बजाय कहाणी रै पाठ नै आधार बणावतां आ कोसीस करीजी है। इण पोथी मांय कहाणी रौ पूरौ इतिहास विगतावण री बजाय कीं कहाणीकारां री नुंवी दीठ सूं कूंत करतां वांरी सिरजणा रै मरम तांई पूगण री कोसीस करीजी है। इण अंवेर-परख में जिका रचनाकार सामिल है वांरी कहाणियां रै इण ढाळै अध्ययन सूं जठै आलोचना नै पुखता जमीन मिळै वठै ई दूजा कहाणीकारां अर पाठकां नै किणी रचना नै देखण-परखण अर खासकर उण रै अरथ तांई पूगण री आफळ अवस मिळैला।
-नंद भारद्वाज