आत्मीयता सूं रचिया संवेदनशील बिम्ब

‘पाछो कुण आसी’ कविता-संग्रै री कवितावां सबदां रै असवाड़ै-पसवाड़ै लुकमीचणी रमै, जिकी सवालां रै पगोथियै ऊभ’र मानखै सूं कदैई सीधी बंतळ करै अर कदैई उण सूं सवालां री भासा में बात करै। ‘म्हारी कविता कठै अड़ै भाई थारै?’, ‘थे ओळखो तो हो कविता नैं....?’ जैड़ी कवितावां में आ बात निगै आवै।
नीरज दइया री अै कवितावां आज अर बीत्योड़ै काल री कवितावां तो है ईज, आवणआळै काल रा पळका ई आं कवितावां में पड़ै। बदळती जिंदगाणी, बदळता संबंधां, बदळती तकनीक, बदळता काण-कायदां बिच्चै लड़थड़तो आदमी मिरगलै दांई भटकै है। भटकाव री इण तिरस रा विचारात्मक अर संवेदनशील बिम्ब नीरज आत्मीयता सूं रचिया है। भासा अर शिल्प ई इण में सांतरो है। गद्य-कविता सूं लेय’र छंद री लय तक रो इण में प्रयोग कियोड़ो है।
—आईदानसिंह भाटी