- बुलाकी शर्मा
भारतीय साहित्य
की अप्रीतम कवयित्री अमृता प्रीतम की तुलना किसी अन्य से नहीं, स्वयं उन्हीं से की
जा सकती है। वे ही हैं जो ‘अमृता प्रीतम’ शीर्षक कविता के माध्यम से अपने दर्द को
वाणी दे सकती हैं :
‘एक दरद हो
जिको म्हैं पीयो
चुपचाप- सिगरेट
दांई
फगत कीं नजमां
है-
जिकी म्हैं झाड़ी
सिगरेट सूं राख
दांई’
अमृता प्रीतम का कहने का अंजाद,
बिम्ब-प्रतीक, स्वप्न-यथार्थ, सब कुछ मौलिक-अतुलनीय है। उनके काव्य-संसार से ‘कागद
अर कैनवास’ के माध्यम से राजस्थानी पाठक पहली बार परिचित होंगे।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उन्के
पंजाबी कविता संग्रह का युवा कवि-आलोचक नीरज दइया ने राजस्थानी में अनुवाद करके
प्रशंसनीय कार्य किया है। राजस्थानी पाठकों के लिए अमृता प्रीतम का काव्य-लोक एक
अद्भुत, अनोखा और अनदेखा होगा और वे उसमें विचरण कर अभिभूत होंगे।
नारी मन की
कोमल-आहत भावनाओं, उनकी संवेदना को मार्मिकता से कवयित्री ने उकेरा है। मानव के
अंतरमन के संकल्प, एकांतिकता को भी उन्होंने सघनता से अभिव्यंजित किया है। समाज की
षड्यंत्रकारी अनीतियों से आहत कोमल नारी मन विद्रोह की आग से धधकने लगता है। वह ‘आखरों’
को अपने हाथों में इस विश्वास के लेती हैं कि वे अग्नि के पूर्वज हैं-
‘आ छोटी काळी लीक
ना जाणजै
ऐ लीकां रा
गुच्छा
साथी थांरी अगन
रा देख !
आखरां री हुवै
अगन सरीखी झळ
ऐ आखर है- अगन रा
बडेरा।’
दीन-हीन,
शोषित-प्रताड़ित जनों की पीड़ा से व्यथित वे ईश्वर से प्रश्न करती हैं-
‘धरती घणी रूपाळी
पोथी
चांद-सूरज री
जिल्दवाली
पण भगवान !
ओ दुख, ढबक अर
गुलाम
ओ थारो रच्यो पाठ
रो?
का प्रूफ री
गलतियां।’
ज्ञान प्रकाशन
मंदिर बीकानेर से प्रकाशित एवं सद्य लोकार्पित इस पुस्तक पर बहुत मोहक आवरण प्रसिद्ध
चित्रकार इमरोज का है। नीरज दइया ने राजस्थानी कविता की प्रकृति के अनुकूल पंजाबी
कविताओं का इतनी कुशलता से अनुवाद किया है कि वे मूल राजस्थानी कविता का-सा आस्वाद
देती हैं।
(26-10-2000
दैनिक भास्कर
बीकानेर में प्रकाशित)
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कागज अर कैनवास (कविता संग्रह) मूल अमृता प्रीतम
अनुवाद- डॉ. नीरज दइया
प्रकाशक : ज्ञान प्रकाशन, बीकानेर
संस्करण : 2000 ; पृष्ठ संख्या : 88 ; मूल्य : 100/-
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कागज अर कैनवास (कविता संग्रह) मूल अमृता प्रीतम
अनुवाद- डॉ. नीरज दइया
प्रकाशक : ज्ञान प्रकाशन, बीकानेर
संस्करण : 2000 ; पृष्ठ संख्या : 88 ; मूल्य : 100/-
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