देसूंटो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
देसूंटो लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

देसूंटो " सबद में ई हुवै देस

- बुलाकी शर्मा
      नीरज दइया का कवि-मन अपने सर्जक-पिता के समय वियोग से संवेदित, वयथित एवं कारुणिक रहा है। अपने पहले राजस्थानी कविता-संग्रह ‘साख’ में वियोग से उपजी पीड़ा, हताशा, लाचारी, पिता की अमिट स्मृतियों को उन्होंने सघन अनुूतियों सहित ूपाकृति दी, वहीं लंबी कविता ‘देसूंटो’ तक आकर पितृ-वियोग को उनकी पीड़ा वैयक्तिक से सार्वमिक बन गई है। यहां सांवरा (सांवर दइया) कवि का सर्जक ही नहीं, विश्व-सर्जक के रूप से उपस्थित हुआ-
       ूं है सांवरा/ म्हैं थारी रचना/ ूं म्हारो सिरजक/ ओ सांच है / कै म्हारो सिरजक।’
       प्रयोगशील कवि नीरज ‘देसूंटो’ में स्वप्न और सत्य, श्वास और स्वप्न, पिता और परमपिता, भाग्य और कर्म, वैश्विक गति-अगति सदृश्य प्रश्नों को उकेरते, ऐसी द्वंद्वात्मक स्िति से मभेड़ करते उत्तर तलाशते हैं।
       ‘सुपनां अर सांच मांय/ घणो आंतरो नीं’ हुया करै सुपनां ई हुया करै सांच/ अर सांच रा ई’आया करै सुपनां।’
       कवि स्वयं के सृष्टा से अलग इस जीवन को ‘देसूंटो’ यानी निर्वासन की संज्ञा देता है लेकिन यहां निर्वासन अनेक रूपों में उपस्थित हुआ है। स्वपनों में भी कई देहोते हैं और उनका खंडित होना भी निर्वासन है। दूरस् अदृश्य लोक में निपट अकेला बैठा सर्जक अपनी सर्जना की अनुपस्थिति में निर्वान ही भोग रहा होता है। स्व्न, स्वप्नों में देश, देशों से निर्वासन, िर भी स्वपनों में उन देशों का जीवित रहना सदृश्य आंतरिक मनःस्थिति को कवि ने शैल्पिक कशल से बहुत रागात्मकता से उकेरा है। ‘देसूंटो’ की व्यथा इन पंक्तियों में गहन हो गई है- ‘देसूंटो पछै/ ड़ै ठाह देस री कै कांई हुवै / कोई देस।’ निर्वासित सर्जक स्वयं को संतुलिअविचलित बनाए रखता है क्यों कि वह जानता है कि ‘सिरजक खातर/ सबद में ई हुवै देस।’
     ्ञान प्रकाशन मंदिर बीकानेर से सद्य प्रकाशित एवं लोकार्पित युवा कवि नीरज दइया की यह लंबी कविता ‘देसूंटो’ राजस्थानी काव्य परंपरा में लंबी कविता का विधिवत शुभारंभ है। कवि की संवेदनशीलता, अंतर्मन को उद्वेलित करने की सामर्थ्य, शैल्पिक प्रयोगशीलता, विषय की नवीनता एवं अनुूतियों की घनता के कारन ‘देसूंटो’ राजस्थानी काव्य में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगी।  

अक्टूबर 2000 दैनिक भास्कर, बीकानेर

जातरा रै आदि-अंत सूं म्यनो मांगणो

मालचन्द तिवाड़ी  
वो अेक है !
अर उणरी
नीं हुवै गिणती !!
     नीरज दइया री लांबी कविता ‘देसूंटो’ इण गिणती में नीं आंवतै ‘अेक’ सूं अेक लांबो, अणथक अर बेजा कठिन संवाद है; नीं, संवाद नीं, इण अेक नैं सम्बोधित संलाप ! इण संलाप री सिरजणा है अेक गैरी व्यथा कै मिनख जद मिनख रूप रचीज’र आपरी जीवण-जातरा शुरु करै तद सांस अर सुपनां रै इण देस मांय अपरै किणी तात्त्विक देस सूं ‘देसूंटो’ तो नीं भुगतै ? फगत विषय री दीठ सूं ई नीं, घड़त अर मुहावरै री दीठ सूं ई राजस्थानी कविता मांय आ लांबी कविता अेक नुंवो श्रीगणेश है। नीरज री आ कविता इणी जातरा, जीवण-जातरा सूं उठतै सवालां रै सामीं ऊभी आपरो दुख रचै-
इण देस
म्हैं सोधूं कथा
सांस रै रचाव री
अर हांती दांई
आवै पांती म्हारै
थोड़ा’क सुपनां
     सुपनां रै पांण मिनख हूंस सूं जीवै अर सुपनां री आपरी विडम्बना आ है कै वै हांती दांई पांती आवै- किणी थाळ मांय परोसीज’र सामीं नीं मेलीजै। अरथ ओ कै सुपना अेक तरै सूं आपणै सगळै संसारू संबंधां रो सार हुवै, सुपना तकात री इण संसार-सापेक्षता नैं नीरज रो कवि अेक साव निजू सवालिया दीठ सूं देखै। सांस अर सुपनां रै ट्रैक माथै चालती आ जातरा आपरै आरंभ अर अंत दोवूं सूं अनथक मुठभेड़ करती आगै बधती जावै।
     इण कविता रो अेक औरूं फूटरापो ओ है कै आपरी सगळी तात्त्विक-सी विषय-वस्तु रै उपरांत ई आ पाठक कै श्रोता मिनख री संवेदना सूं घणी अळगी नीं नीसरै। इण रो कारण ओ है के आ कविता आपरै ‘देसूंटै’ रै देस री व्यथा सूं ई उपजै, उण अरूप रै अणजाण देस सूं नीं जिण सूं कै आ आपरी व्यथा रा सगळा म्याना मांगणी चावै। अठै कवि-कर्म रो चात्रक व्यापर सरावजोग है कै नीरज दइया आपरै लौकिक सिरजक अर्थात जलम रै बीज-कारण पिता अर पारलौकिक विधाता अर्थात संसार रै इच्छा-कारक ईश्वर दोवूं रै श्लेष नैं अचूक ढाळै परोट्यो है। ‘सांवरा’ नैं संबोधित आ कविता इणी श्लेष रा तांतण इण ढब बुणै कै कविता रो अेक साव नुंवो भाषिक पैटर्न कै डिजायन आपां सामीं हवळै-हवळै चरूड़ हुवंतो जावै।
     लांबी कविता मांय दुहराव री जोखाम नै टाळणो अेक ठाडी चुनौति हुया करै। इण लांबी कविता रै सीगै साफ दीसै कै नीरज इणनैं अेक इकाई ढाळै सामीं राखण में पूरी शैल्पिक खेचळ करी है। आपरै ऊंडै सरोकार, आपरी संवेदनात्मक पकड़ अर आपरी शैल्पिक सोय रै कारण ‘देसूंटो’ लांबी कविता राजस्थानी भाषा री आंवती कविता रो अेक सबळो अर बधावो गावणजोग दीठाव है। म्हैं इण ऊर्जा अर ऊरमा रो साखी बणतां म्हारो भाग सराऊं।