कहाणी जातरा री सांतरी कपड़छांण

मदन गोपाल लढ़ा
हासलपाई बिना जोड़-बाकी को हुवै नीं तो आलोचना में हासलपाई सारू कोई ठौड़ कोनी हुवै। पण भळै ई आलोचना में हासलपाई लगावणै रो काम लगोलग चालतो रैयो है। इण हासलपाई रै पांण ई केई लूंठा बण बैठ्या तो केई गिणती में ई कोनी आया। चावा आलोचक नीरज दइया आपरी नवी पोथी ‘बिना हासलपाई’ री मारफत कहाणी जातरा री कपड़छांण री खरी खेचळ करी है। आ खेचळ इण सारू महताऊ मानी जावैला कै इण पोथी सूं केई अैड़ा कहाणीकारां रा नांव अर बां रो जस उजास में आयो है जका बाबत अजै लग जाबक मून ही।
कैवण री दरकार कोनी कै राजस्थानी कहाणी री जातरा जित्ती लाम्बी अर रंगधारी रैयी है, आलोचना पेटै बित्ती ई सुनेड़ रैयी है। आपां जाणां कै आधुनिक कहाणी री सरुवात १९५६ में हुई जद मुरलीधर व्यास अर नानूराम संस्कर्ता कहाणी रै सीगै जमीन बणावणै रो जसजोग काम करियो। सातवै दसक पछै कहाणी री जातरा डांडी पकड़गी आधुनिकता रा पगोथिया चढतां थकां भारतीय साहित्य रै दीठाव में आपरी ठावी ठौड़ बणाय ली। बीसवीं सदी रै छेहलै दसक तांई पूगतां-पूगतां कहाणी री दुनियां कथ्य अर शिल्प री दीठ सूं सवाई सांवठी हुयगी। इणरै बरक्स आपां जे कहाणी री आलोचना री बात करां तो लाम्बै बगत तांई पोथ्यां री भूमिकावां का फुटकर आलेखां नैं टाळ‘र ठंड ई रैयी। सांचै अरथां में कहाणी आलोचना पेटै पैलो पांवडो डॉ. अर्जुनदेव चारण धर्यो। कहाणी आलोचना माथै केन्द्रित बां री पोथी ‘राजस्थानी कहाणीः परम्परा अर विकास’ १९९८ में आई। चालीस बरसां सूं बेसी जूनी राजस्थानी कहाणी री जातरा री अेकठ फिरोळ रो सुतंतर पोथी रूप ओ पैलो अर उल्लेखजोग प्रयास हो। अैड़ा काम बगतसर अर पूरसल हुवता तो स्यात कहाणी रो दीठाव वैड़ो कोनी हुवतो जैड़ो आज है। आ बात आलोचना विधा साम्हीं अेक सवालियो निसान लगावै। विचारणो पड़ैला कै क्यूं पांच टणका कहाणी संग्रै रै मिस ८५ नेड़ी कहाणियां लिखण वाळा लिखारा नानूराम संस्कर्ता कहाणी जातरा में ‘आउट-साइडर’ ई रैया। क्यूं कृष्ण कुमार कौशिक आ मुरलीधर शर्मा ‘विमल’ जैड़ा कहाणीकारां री कलम इक्की-दुक्की पोथ्यां सूं आगै कोनी बधी। कन्हैयालाल भाटी, मोहन आलोक आद सबळा कहाणीकार ई सावळ अंवेर नीं हुवणै सूं बगतसर पोथी रूप कोनी छप सक्या। आलोचना किणी नैं रचनाकार तो कोनी बणा सकै पण रचनाकार नैं बधावणै सारू आलोचना री महताऊ भूमिका हुया करै। कहाणी रो इतियास साख भरै कै खरी कूंत नीं हुयां कलम री कोरणी मंदी पड़ता जेज नीं लागै।
कहाणी आलोचना री कूंत करां तो तीन मोटी कमियां पड़तख दीसै- कहाणी रै पाठ री ठौड़ कहाणीकारां रै नांवां माथै ध्यान, हासलपाई लगावणै मतळब बिड़दावणै री बाण अर कूंत सारू अेकल मानदण्ड नीं हुवणो। आं कमियां रै कारण ई आलोचना किणी नैं थरपण अर किणी नै पटकण रो साझन बणगी। ओ अकारण कोनी कै कहाणी आलोचना नीं तो पाठकां रो भरोसो हासल कर पाई अर नीं लिखारां रो। आ पोथी इण छेती नैं पाटण पेटै अेक महताऊ पांवडो मानीज सकै।
इण पोथी में कहाणी आलोचना अर कहाणी री परम्परा नैं अंवेरता दो आलेख है बठैई नवा-जूना पच्चीस कहाणीकारां री कहाणी जातरां री पूरी सुथराई सूं फिरोळ करीजी है। पैलो आलेख ‘कहाणी आलोचना : बिना हासलपाई’ पोथी री भूमिका दांई है जिणमें आलोचक इण विधा पेटै अजैलग हुयोड़ै काम नैं अंवेरतां आपरी दीठ नैं साम्हीं ल्यावै। आपां जाणां कै हरेक आलोचक रा निजू राछ-पानां हुया करै, जकां सूं बो कोई रचना री परख करै। अै औजार ई उणरी समदीठ नैं अंतरदीठ सूं जोड़ै। इण आलेख में आलोचना पोथ्यां अर संपादित कहाणी संकलनां री बात करतां थकां ‘जमारो’, ‘समद अर थार’ जैड़ी संजोरी पोथ्यां रचणिया यादवेन्द्र शर्मा जेड़ै राजस्थानी मनगत रै सबळै लिखारै नैं हिंदी प्रतिमान वाळा कहाणीकार बतावणै, मनमरजी सूं जुग थरपणै, उपन्यास री ठौड़ नवल कथा सबद बरतणै रै प्रस्ताव, पोथ्यां री विगत बणावणै आद माथै आलोचक जका सवाल उठावै बै पाठक नैं ई सोचणै सारू मजबूर करै। आलोचक-संपादकां री देवळ्यां तो कोनी बणै पण बां री पखापखी पाठकां नैं भटका सकै। इणींज कारण आलोचना कारज नैं खांडै री धार माथै धावणो कैयो जावै। ‘आधुनिक कहाणीः शिल्प आ संवेदना’ सिरैनांव सूं दूजो आलेख इण विधा रै रूप-रंग माथै उजास न्हाखै। नांवी लिखारां रै ‘कोटेशन’ सूं आगै बधतै इण आलेख में ओपतै उदाहरणां सूं कहाणी रै ढंग-ढाळै री कूंत करीजी है।
नृसिंह राजपुरोहित री कहाणी जातरा माथै केन्द्रित आलेख ‘बगत रै सागै : बगत सूं आगै’ बां नै अेक टाळवैं कहाणीकार रै रूप में बखाणै। पैली ओळी मे ई आलोचक रो सफीट मानणो है कै ‘समकालीन भारतीय कहाणी मांय जे राजस्थानी सूं किणी अेक ई टाळवैं कहाणीकार नै सामिल करण री बात हुवै तो म्हारी दीठ सूं नृसिंह राजपुरोहित नै सामिल किया जावणा चाइजै। (पृ. ३१) राजपुरोहित जी री १९५१ सूं सरू हुयोड़ी कहाणी जातरा री पांच कहाणी संग्रै री मारफत फिरोळ कर’र आलेख रै अंत में आलोचक आपरी बात नैं इण भांत पोखै- ‘बिना हासलपाई अठै लिखतां म्हनैं संको कोनी कै आधुनिक कहाणी री सरूवात विजयदान देथा सूं नी कर’र आपां नै नृसिंह राजपुरोहित सूं करणी चाइजै, क्यूंकै बिज्जी लोककथावां रा कारीगर है। फगत दो-च्यार कहाणियां लिखण सूं बिज्जी नै आपां गुलेरी तो मान सकां, पण राजस्थानी कहाणी रा प्रेमचंद तो नृसिंह राजपुरोहित ई गिणीजैला।’ (पृ. ३६)
पैली पीढी रा कहाणीकार श्रीलाल नथमल जोशी री कहाणियां माथै केन्द्रित आलेख ‘जोशी थांरा पगल्या पूजूं’ में आलोचक लोक रंग, सामाजिक काण-कायदा, विषयगत नवीनता रै सागै आगाऊ सोच अर बोल्डनेस नैं रेखांकित करै। इणींज भांत ‘पाटी पढावती कहाणियां’ सिरैनांव सूं आलेख में अन्नाराम सुदामा री कहाणियां नैं सीख नै पोखणवाळी बतावै। ‘बां जीवैला अर धाड़फाड़ जीवैला’ आलेख में आलोचक यादवेन्द्र शर्मा ‘चंद्र’ री कहाणियां में लुगाई जात री ओळखाण बगत परवाण नुंवै ढंग-ढाळै सूं करियोड़ी बतावै। आलोचक री पीड़ है कै ‘आलोचना मांय जठै अेक बाट आपां नै सगळा खातर राखणो चाइजै, बठै तो आपां न्यारा-न्यारा राखां अर जठै आपां नै की तकलीफ हुवै नुंवा बाट सोधण री, बठै काम नै चलतै में सलटावणो चावां।’ इण आलेख में पूरै नैठाव सूं ओपता उदाहरणां सागै आ बात पुखता करीजी है कै चंद्र जी री कहाणियां में लुगाई री ओळखाण फगत देह-राग सूं बंध्योड़ी कोनी, बा बगत मुजब आपरी नवी ओळखाण सारू संभ्योड़ी दीखै। ‘कहाणियां री सळवंटा काढतो कहाणीकार’ आलेख में रामेश्वर दयाल श्रीमाली री कहाणी जातरा बाबत सांगोपांग बात करीजी है तो ‘आदमी रो सींग अर माटी री महक’ सिरैनांव सूं करणीदान बारहठ री कहाणियां री जमीन संभाळीजी है। ‘असवाड़ै-पसवाड़ै रा छोटा-छोटा सुख-दुख’ पोथी रो खास आलेख है जिणमें डॉ. नीरज दइया आधुनिक कहाणी रा हरावळ कहाणीकार सांवर दइया री कहाणी-कला माथै बात करी है। आपां जाणां कै बेटै रै रूप में सांवरजी री दुनियां सूं आलोचक रो निजू जुड़ाव रैयो है। अेक आलोचक री निजर सूं सांवर जी रै कहाणी जगत री आ जातरा जोवण जैड़ी है। इण आलेख में राजस्थानी कहाणी नैं नवी बुणगट, प्रामाणिक जीवण अनुभव, ओपती भाषा अर संवाद शैली सूं राती-माती करणै वाळा सखरा कारीगर सांवर दइया री कहाणी-कला माथै घणी सुथराई सूं विचार करीज्यो है। संवाद कहाणियां रै मिस सांवर जी जको नवो प्रयोग करियो उणनैं ‘कथा रूढ़ि बणावणै बाबत’ ‘माणक’ सारू आम्ही-साम्ही में कन्हैयालाल भाटी रै सवाल रो सांवर जी रो उथळो ‘रिमाइण्ड’ करवा’र आलोचक चोखो काम करियो है।
सांवर जी रा समकालीन कहाणीकार भंवरलाल भ्रमर री कहाणियां बाबत ‘अमूजो दरसावती कहाणियां अर सातोतूं सुख’ में आलोचक भ्रमर जी रै कहाणी जगत रो दरसाव तो करावै ई है, संपादन आ आलाचना री बिडरूपतावां नैं ई साम्हीं ल्यावै। ‘गांव री संस्कृति अर संस्कृति रो गांव’ सिरैनांव सूं ग्रामीण संस्कृति रा सबळा चितेरा मनोहर सिंह राठौड़ री कहाणी-कला री परख करीजी है। ‘नामी कवि री नामी कहाणियां’ अर ‘आत्मकथा रा खुणा-खचुणा परसती कहाणियां’ आलेखां में क्रमश: मोहन आलोक अर नंद भारद्वाज री कहाणी जातरा री परख करीजी है। आपां जाणा कै अै दोनूं लिखारा कवि रूप जाणीता रैया है पण आं री सबळी-सांतरी कहाणियां इण विधा रै इतियास नैं दूसर जांचण-पाखण री मांग करै। अनुवाद पेटै जस कमावणियां कन्हैयालाल भाटी अर रामनरेश सोनी री कहाणी कला माथै क्रमश: ‘कहाणियां मांय नुंवी भावधारा रा मंडाण’ अर ‘मानखै रै ऊजळ पख री कहाणियां’ में विचार करीज्यो है। ‘अधूरी कहाणी जातरा रा पूरा अैनाण’ सिरैनांव सूं अशोक जोशी ‘क्रांत’ री कहाणी माथै बात करता दइया लिखै- ‘कहाणी जातरा मांय नुंवा प्रयोग, नाटकीय भाषा अर साव निरवाळी बुणगट रै पाण अषोक जोषी ‘क्रांत’ लूंठै कहाणीकार रै रूप सदा याद करीजैला। (पृ. १२३)
‘अेक बिसरियोड़ै कहाणीकार री बात’ आलेख में अस्सी रै दसक में सांतरी कहाणियां रचणियां मुरलीधर शर्मा ‘विमल’ री कहाणी-कला री संभाळ हुई है। इणरै सागै अैड़ा केई बीजा कहाणीकारां माथै ई न्यारै-न्यारै आलेखां में चरचा हुई है जका आलोचना रै दीठाव में लारै छूटग्या का लेखन प्रमाणै वाजिब मुकाम नीं मिल्यो। अैड़ा कहाणीकार है- रामपाल सिंह राजपुरोहित, मेहरचंद धामू, अर डॉ. चांदकौर जोशी। ‘अंतस रै साच माथै जोर’ आलेख में बुलाकी शर्मा री कहाणी कला री अंवेर करता आलोचक बां नैं बणता-बदळता संबंध अर संबंधा री थोथ उजागर करणिया कहाणीकार मानै। ‘फुरसत मांय भोळी बातां रो जथारथ’ आलेख में मदन सैनी री कहाणी दीठ री परख करीजी है। ‘सावळ-कावळ स्सो कीं राम जाणै’ सिरैनांव सूं आलेख में नीरज दइया प्रमोद कुमार शर्मा री कहाणियां नैं अरथावै तो ‘न्यारै-न्यारै हेत नै अरथावती कहाणियां’ रै मिस नवनीत पाण्डे री कहाणिया रा रंग ओळखणै री आफळ करीजी है। ‘चौथै थंब माथै चढ’र चहकती कहाणियां’ आलेख में मनोज कुमार स्वामी री सामाजिक चेतना री अंवेर हुयी है तो ‘भाषा अर बुणगट रै सीगै भरोसैमंद कहाणियां’ सिरै नांव सूं पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ रै कहाणी जगत में भाषा बुणगट अर भावगत सिमरधता री ओळखाण करीजी है। ‘दलित कहाणी रो विधिवत श्रीगणेष सिरैनांव सूं छेहलै आलेख में आलोचक नवी पीढी रा कहाणीकार उम्मेद धानियां री कहाणियां में जथारथ अर सांच नैं उल्लेखजोग बतावता लिखै कै ‘आं दोनूं पोथ्यां मांय दलिता रो ग्रामीण जन-जीवन, जातीय अबखायां, जूझ, गरीबी, कुप्रथावां, निरक्षरता, सामाजिक जुड़ाव, जनचेतना, अनुभव-जातरा, रीस अर हूंस रो पूरो लेखो-जोखो किणी दस्तावेज रूप अंवेरती कहाणियां मिलै।’ (पृ. १५७)
राजस्थानी आलोचना में आपां नैं जठै सकारात्मक भाव सांची कैवां तो बिड़दावणै रो भाव प्रमुख रैयो है बठै ई आलोच्य पोथी में खरी अर खारी कैवण री हिम्मत करीजी है। जरूरत फगत इण बात री लखावै कै आपां आलोचना नैं खुल्लै मन सूं स्वीकार करण री बांण घालां।
सार रूप कैयो जा सकै कै कहाणीकार री ठौड़ कहाणी रै पाठ री प्रमुखता, स्वस्थ आलोचनात्म्क दीठ अर आलोचना सारू ओपती भाषा इण पोथी तीन मोटी खासियत है। आलोचना विधा में आपरी पैली पोथी ‘आलोचना रै आंगणै’ सूं दइया जकी सखरी हाजरी मांडी, उण पछै, बिना हासलपाई’ नैं अेक लाम्बी अर अरथाऊ छलांग कैयी जा सकै। कैवण री दरकार कोनी कै इण छलांग सूं पक्कायत ई आलोचना विधा दो फलांग आगै बधी है। इण महताऊ अर जसजोग काम सारू आलोचक अर प्रकाशक नैं घणा-घणा रंग।

(`कथेसर' जन-जून 2015 में प्रकाशित)