काव्य-संवेदणा नै ओपती पिछाण

राजस्थानी लेखण रै मौजूदा दौर में अेक कवि अर आलोचक रै रूप में नीरज दइया आपरी ठावी पिछाण राखै। मौलिक सिरजण अर साहित्यिक अंवेर-परख रै समचै ई वै राजस्थानी री नवी कविता रा लूंठा हिमायती पण जाणीजै। वांरी कविता में जीवण रा राग-रंग, लोकराज में मिनखीचारै रा माण-मोल अर हेत-प्रेम रा मानवी रिस्तांं रा मोवणा चित्राम वंारै काळजै री कळ-झळ अर कंवळै अंतस री साख भरै। वै किणी अमूरत भावलोक कै सबदां री कळा-कोरणी में नीं, आम लोगां रै जीवण-वैवार में ई कविता री असल कमाई, अरथाव अर आगोतर देखै। म्हनै आ बात कैवण में राई भर संको नीं कै नीरज दइया आपरै सिरजणहार जीसा (सांवर दइया) री विरासत अर सिरजण-संवेदना री पूरी अंवेर साथै खुद री काव्य-संवेदणा नै ओपती पिछाण दीवी है।
—नंद भारद्वाज