मूल कविताओं व अनुसृजन की बेजोड़ जुगलबंदी

० देवकिशन राजपुरोहित
 लेखन कार्य अपने आप में दुरूह कार्य है। कविता लेखन के लिए कहा जाता है कि किन्हीं विशेष क्षणों और समय में कविता सृजित होती है। किसी भाषा की कविता को दूसरी भाषा में अनुवाद महज भाषांतरण नहीं वरन अनुसृजन है। अनुवाद की कसौटी भी है कि ऐसा सृजन जो मूल सृजन के पीछे पीछे चल कर मूल सृजन को साध ले अथवा उस तक पहुंचने की आकांक्षा में स्वयं ही सृजन हो जाए। ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण कार्य डॉ. नीरज दइया द्वारा किया गया है। दइया पहले भी अनुवाद के क्षेत्र में बहुत काम कर चुके हैं। उन्होंने मोहन आलोक की कविताओं का राजस्थानी से हिंदी में अनुवाद किया है तो अमृत प्रीतम, निर्मल वर्मा, भोलाभाई पटेल, नंदकिशोर आचार्य आदि की कृतियों के राजस्थानी अनुवाद दिए हैं। साथ ही यहां उल्लेखनीय है कि ‘सवद-नाद’ नामक पुस्तक में भारतीय कविता की एक व्यापक छवि दिखाने के लिए चौबीस भारतीय भाषाओं के कवियों को आपने राजस्थानी में सुलभ कराया है। ऐसे सुयोग्य अनुवाद के हाथों हिंदी के वरिष्ठ कवि सुधीर सक्सेना के दस कविता संग्रहों से चयनित कविताओं को आलोच्य कृति में देख पाना बेहद सुखद है। इस अनूदित कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें न केवल कविताओं के राजस्थानी अनुवाद दिए गए हैं वरन उनके साथ कवि की मूल कविताओं का पाठ भी साझा किया गया है। ऐसे में यह पुस्तक किसी बड़े ग्रंथ के सदृश्य हिंदी और राजस्थानी भाषा और अनुवाद के अनेक रहस्यों को उजागर करने का कार्य करती है वहीं नए रचनाकारों और शोधार्थियों के लिए अध्ययन मनन के नए द्वार खोलती है।   
    हिन्दी के प्रख्यात कवि नरेश सक्सेना का मत है कि इस समय जबकि कविता की दुनिया नकली और सिन्थेटिक भाषा से भर गई है इन कविताओं के राजस्थानी अनुवाद अंधेरे में रोशनी के एक दुर्लभ द्वार की तरह खुलते हैं। नीरज दइया ने अपनी सृजनात्मक प्रतिभा से इन कविताओं के अनुवादों को अतिरिक्त सौंदर्य और सहज पठनीयता दी है। जो दुर्लभ है। सक्सेना की बात से पूर्णतः सहमति प्रगट करते हुए कहा जा सकता है कि प्रस्तुत पुस्तक में जिस मानक लोकभाषा के सौंदर्य से कविताओं के पाठ में नाद की अभिवृद्धि हुई है वहीं लयात्मकता से कविताएं मूल राजस्थानी कविताओं के सदृश्य प्रतीत होती है। डॉ. मदन सैनी ने भी पुस्तक के फ्लैप पर पुस्तक की भूरि―भूरि प्रशंसा की है। इस अनुसृजन के उम्दा सवरूप और सरस सृजनात्मक पख के पीछे वैसे तो मूल कवि की मेधा को ई सराहना चाहिए पर अनुसृजक की भाषा-क्षमता, देश-काल-परिवेश के बोध, भाव और कलापक्ष के प्रति गहरी सूझ को इतिहास और संस्कृति के सूक्ष्म ज्ञान को भी सराहना चाहिए जिससे यह अनुवाद सरस, सरल और बोधगम्य बन सका। संग्रह की छप्पन कविताओं के आधार पर जहां मूल कवि की अद्वितीय मेधा का पता चलता है वहीं डॉ. नीरज दइया के बेजोड़ अनुवाद होने का प्रमाण भी पृष्ठ-दर-पृष्ठ मिलता है। पुस्तक के प्रकाशक लोकमित्र दिल्ली को सुरुचिपूर्ण और मनोहर प्रकाशन के लिए बधाई और कवि-अनुवादक को शुभकामनाएं।
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पुस्तक : अजेस ई रातो है अगूण
मूल कवि (हिंदी) : सुधीर सक्सेना
संचयन-अनुसृजन (राजस्थानी) : नीरज दइया
संस्करण : 2016 ; पृष्ठ : 144 ; मूल्य : 295/-
प्रकाशक : लोकमित्र, 1/6588, रोहतास नगर (पूर्व), शाहदरा, दिल्ली-110032
ISBN : 978-93-80347-59-2