आलोचना कर्म के प्रति गहरा सरोकार : नेगचार

वेद व्यास
नेगचार राजस्थानी में प्रकाशित हुई एक नई छमाही पत्रिका है । प्रसिद्ध कवि और कथाकार स्व. सांवर दइया के पुत्र नीरज दइया इसके संपादक हैं । नीरज दइया स्वयं एक प्रतिभाशाली कवि हैं तथा नेगचार का पहला अंक पढ़कर ही ऐसा लगता है कि राजस्थानी सृजन के प्रति और आलोचना कर्म के प्रति उनका सरोकार बहुत गहरा है ।
नेगचार-1 के इस अंक में जहां मनोहर शर्मा और अनिल जोशी के निबंध हैं, मदन सैनी और यादवेंद्र शर्मा चंद्र की कहानियां हैं, बुलाकी शर्मा का व्यंग्य है, सत्यप्रकाश जोशी, मोहन आलोक, रामेश्वर दयाल श्रीमाली, भानसिंह शेखावत, श्याम महर्षि और मीठेश निर्मोही की कविताएं और गौतम अरोड़ा की लधुकथाएं हैं, वहां राजस्थानी साहित्य में आत्ममुग्ध राजनीति के नायक विजयदान देथा को लेकर विशेष सामग्री- आरसी हरफ रै आंगणै शीर्षक से एक पठनीय सामग्री है । संस्थान, पुरस्कार, आशीर्वाद और राजनीति की लोक कथा की तरह विजयदान देथा के असल स्वरूप को इस दर्पण में बहुत साफ देखा जा सकता है । सांवर दइया के नाम विजयदान देथा के पत्र, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के सचिव इंद्रनाथ चौधरी  के नाम सांवर दइया का पत्र और नंद भारद्वाज की विजयदान देथा पर टिप्पणी जैसी अनेक बातें पढ़कर सामान्य पाठक और राजस्थानी रचनाकार बहुत कुछ आसानी से समझ सकता है कि राजस्थानी भाषा- साहित्य में भी जंवाई-भाई का खेल बड़े जोर से चल रहा है तथा एक जात और न्यात की गिरोहबंदी के बीच राजस्थानी प्रतिभाओं को किस तरह घाट-घाट की लूटपाट का शिकार होना पड़ रहा है । शायद विजयदान देथा के तिलस्म को समझने की यह शुरुआत है और दिल्ली तज फैली उनकी जड़ों को टटोलने का साहस भी है ।
नेगचार एक बहुत साफ-सुथरी और रचना चयन की दृष्टि से राजस्थानी के समकालीन रचना संसार को आगे बढ़ानेवाली पत्रिका लगती है तथा विजयदान देथा के बहाने साहित्य के प्रपंचवाद पर उठा सवाल पहली बार किसी राजस्थानी पत्रिका ने इस तरह खुलासा किए हैं । नेगचार का पूरा कलेवर और सोच आज का है और इसमें लोक कथाओं और लोक संस्कृति के व्यापरियों को हासिए से बाहर रखा गया है । चालीस पृष्ठों की यह पत्रिका एक बहस जगाती है, गहरे सरोकारों को उठाती है और साहित्य की पृष्ठभूमि में सक्रिय गैर साहित्यिक कपाट के द्बारों को भी खोलती है । 
(दैनिक न्वज्योति, जयपुर)