साहित्य रै आभै मंडता मंडाण

-दुलाराम सहारण

भलांई कुणसी ई भासा हुवै, जद वींरै लिखाव में नवा लिखारां रौ जोड़ नीं जुड़ै तौ वींरौ साहित्य कदैई ऊजळ पख में नीं आवै। नवा लिखारा लगौलग जुड़ै तद साहित्य भंडार री सिमरधाई हुवै अर साहित्य रै चोखळै भासाई विगसाव हुया करै। बरसूंबरस जूंनी राजस्थानी भासा रौ औ जसजोग भाग रैयौ के अठै नवै लिखारां रौ जोड़ हरमेस जुड़तौ रैयौ। लारलै लगैटगै दसेक बरस में कित्ताक नवा लिखारा इण भासा में आया है, इणरौ अेक दाखलौ लेवणौ हुवै तौ डॉ. नीरज दइया रै संपादन में छपी पोथी ‘मंडाण’ नै देखीज सकै। ध्यांन राखीजै के इण पोथी में फगत राजस्थानी कविता छेतर रा नवा लिखारा है अर वै ई देखभाळ, सौधनै लीरीजेड़ा।
राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर लारलै बरसां में भलांई सो-कीं ठीकठाक नीं करियौ हुवै पण वीं औ कांम सांतरौ करियौ है। इण कांम लारै नवै लिखारां नै आगै लावण में हरमेस लागेड़ा साहित्यकार नीरज दइया रौ जस ई कमती नीं है। अेकभांत कैवां के औ वांरौ ई प्रस्ताव हौ। अर वां आपरै ओपतै प्रस्ताव नै चेलेंज रूप में लेयनै बरसां तांणी दाखलौ देवणजोग काम कर मेल्यौ।
‘मंडाण’ भेळै 55 युवा कवियां नै अध्यक्ष री भासा में बधावां तौ कैयीजै- ‘‘आज जिका कविता रै आंगणै नवा-नवा पगलिया मांड रैया है वै काल रै दिन इण आंगणै री साख बधावैला आ संभावना आज अठै देखी जाय सकै।’’ वठैई संपादक री साख भरती लैंण पांण संग्रै भेळी कवितां री सौध लेवां- ‘‘अै कवितावां सरलता, सहजता अर भासा री चतर बुणगट नै नवी दीठ रै पाण आप री न्यारी ओळख थापित करै। अै ऊरमावान रचनाकार जिका आप री भासा अर कविता नै माथै ऊंचाणिया है, आं रो जुड़ाव अर साधना आस उपजावै।’’
इण संग्रै री कवितावां पेटै कूंत करां तौ हरेक कवि री आपरी बणगट-बुणगट है, जकी पेटै बात करां तौ बेसी लांबी जावै। इणी कारणै भेळी बात में कथीज सकै के कवि नवी भारतीय काव्य-धारा में रमता थकां राजस्थानी कविता रौ परंपरावू रूप रौ मोह ई हाल तांणी पूरी भांत नीं छोड्यौ है। जठै तुकांत अर अतुकांत रौ मेळ है वठै राजस्थान रै रंगरूड़ै रूप, गरीबलै इतियास रै बखांण ई है। समाज रै बदळतै सोच अर नवै थरपीजतै तबकां पेटै रीस केई कवियां रै कवितावां में जरूर मिलै पण वा रीस पूरै संग्रै में केंद्रीय भांत नीं है। इण संग्रै नै परखतां थकां कैय सकां के हाल राजस्थानी कविता नै जस सूं बारै निसरनै आक्रोश, विद्रोह, ललकार रै मारग चालण में कीं बगत लागसी। पंरपरा सूं मोह पूरी भांत नीं छूट्या करै पण परंपरा री भारणी ई लांबै बगत नीं बोलीजै। केई भारतीय भासावां री कवितावां इण बातनै समझनै खासौ मारग नाप्यौ है। वीं मारग ई इण संग्रै रा केई चालता अर मजबूती सूं चालता दीखै, पण बहुमत वीं मारग कांनी कोनीं। इण चेतण रै मारग चालतां थकां राजस्थानी कविता अेक नवी छिब थरप सकै, दरकार इण बगत में आ समझण री है। बिंयां देखां तौ औ सवाल संग्रै में कठै-कठैई जाबक मांदौ ई पड़ै अर आस बंधै के हां, राजस्थानी कविता अैड़ी हुवणी चाहीजै। दाखला ई दीरीज सकै, पण वाजिब हुयसी के संग्रै भेळै कवियां रा नाम दाखला दीरीजै।
इण संग्रै में शिवराज भारतीय, गजादान चारण शक्तिसुत, गौरीशंकर प्रजापत, हरीश बी. शर्मा, मोनिका गौड़, चैनसिंह शेखावत, शिवदानसिंह जोलावास, हेमंत गुप्ता पंकज, राजेश कुमार व्यास, नंदकिशोर सोमानी स्नेह, किशोर कुमार निर्वाण, संतोष मायामोहन, किरण राजपुरोहित नितिला, परमेश्वर लाल प्रजापत, सुनील गज्जाणी, महेन्द्र मील, हरिचरण अहरवाल निर्दोष, देवकरण जोशी, हुसैनी बोहरा, घनश्यामनाथ कच्छावा, कुंजन आचार्य, देवकी दर्पण रसराज, मोहन सोनी चक्र, दुलाराम सहारण, रचना शेखावत, कृष्णा सिन्हा, गीता सामौर, दुष्यन्त, गौतम अरोड़ा, राजू सारसर राज, विनोद स्वामी, मदनगोपाल लढा, पृथ्वी परिहार, श्यामसुंदर टेलर, राजेन्द्र गौड़ धुळेट, रमेश भोजक समीर, सत्यनारायण सत्य, संजय आर्चाय वरुण, ओम नागर, मनोज सोनी, जितेन्द्र कुमार सोनी, रीना मेनारिया, कुमार अजय, राजूराम बिजारणिया, हरिशंकर आचार्य, मनोज पुरोहित अनंत, जयनारायण त्रिपाठी, मोहन पुरी, अंकिता पुरोहित, गौरीशंकर, सतीश छिम्पा, सिया चौधरी, रतनलाल जाट, दुष्यन्त जोशी अर गंगासागर शर्मा भेळा है।
संग्रै री कूंत पेटै छेकड़ कैवां तौ भासाई अेकरूपता पेटै संपादक खूब मिणत करी है अर आपरी लकब साथै केई रचनावां नै नवौ मोड़ ई दीन्हौ है। संग्रै मांय संपादक री मिणत चड़ूड़ दीखै। वठैई अेक-अेक कवि सूं आफळ करनै रचाव अेकठ करणौ ई अबखौ काम, जकै नै संपादक पार घाल्यौ है। म्हारै कांनी सूं संपादक अर अकादमी नै लखदाद, मंडाण रै ओळाव।

पोथी- मंडाण / विधा- कविता / संपादक- डॉ. नीरज दइया / प्रकाशक- राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, करमीसर रोड, मुरलीधर व्यास नगर, बीकानेर-334004 / पानां- 256 / मोल- 200/-